MP Father Controversy Case: मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आइ है, मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के ताल लिधौरा गांव में एक बुजुर्ग के अंतिम संस्कार को लेकर उनके दो बेटों के बीच विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि बड़े बेटे ने पिता के शव को दो टुकड़ों में बांटकर अलग-अलग अंतिम संस्कार करने की मांग कर दी। मामला बढ़ता देख गांववालों ने पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद पुलिस ने मौके पर पहुंचकर अंतिम संस्कार शांतिपूर्वक संपन्न कराया। जिसने मानवता को शर्मसार कर दिया। यहां ताल लिधौरा गांव में एक बुजुर्ग पिता के अंतिम संस्कार को लेकर दो बेटों के बीच ऐसा विवाद हुआ, जिसने पूरे गांव को हैरान कर दिया…पूरा मामला जानने के लिए पूरा पढ़े.
पिता का अंतिम संस्कार बन गया पारिवारिक खींचतान
85 वर्षीय ध्यान सिंह घोष के निधन के बाद उनके छोटे बेटे दामोदर ने अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू कर दीं। लेकिन जैसे ही बड़े भाई किशन घोष को यह खबर मिली, वह अपने परिवार के साथ वहां पहुंच गया और पिता का अंतिम संस्कार करने की जिद करने लगा।
पिता की लाश के दो टुकड़े करने की शर्मनाक मांग उठी!
दोनों भाइयों में विवाद इतना बढ़ गया कि किशन घोष ने अपने पिता के शव को दो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग अंतिम संस्कार करने की बात कह डाली! यह सुनकर गांव के लोग सकते में आ गए। रिश्तेदारों और ग्रामीणों ने दोनों को समझाने की कोशिश की, लेकिन वे अपनी जिद पर अड़े रहे।
MP में father के अंतिम संस्कार को लेकर भाइयों में विवाद, पुलिस को आना पड़ा
मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के ताल लिधौरा गांव में एक बुजुर्ग के अंतिम संस्कार को लेकर उनके दो बेटों के बीच विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि बड़े बेटे ने पिता के शव को दो टुकड़ों में बांटकर अलग-अलग अंतिम संस्कार करने की मांग कर दी। मामला बढ़ता देख गांववालों ने पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद पुलिस ने मौके पर पहुंचकर अंतिम संस्कार शांतिपूर्वक संपन्न कराया।
क्या है पूरे विवाद की जड़? जाने
दामोदर का कहना था कि वह अपने पिता की सेवा में हमेशा आगे रहा, इसलिए अंतिम संस्कार का अधिकार उसी का है। वहीं, किशन घोष का तर्क था कि पिता के संस्कार में दोनों बेटों का हक बराबर है। लेकिन मामला तब बिगड़ गया जब किशन ने पिता के शव के दो टुकड़े करने की मांग कर दी।
गांव सहित पूरे देश में चर्चा का विषय बना मामला
इस घटना के बाद पूरे गांव में चर्चाएं शुरू हो गईं। बुजुर्गों का कहना था कि इतनी घिनौनी सोच आज तक नहीं देखी, जहां अपने ही पिता के शव को टुकड़ों में बांटने की बात की जाए।
घटना सबक: रिश्तों से बढ़कर कुछ भी नहीं होता!
यह घटना एक बड़ा सबक देती है कि रिश्तों की अहमियत को समझना बेहद जरूरी है। अंतिम संस्कार कोई हक-छीनने की चीज नहीं, बल्कि श्रद्धा और सम्मान का विषय है।
ऐसी खबरें सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि क्या पारिवारिक विवाद इंसानियत से भी ऊपर हो गया है?