भारत में खेती को अक्सर सिर्फ गुजारे का साधन माना जाता है, लेकिन झारखंड की संगीता देवी ने इसे एक सफल बिजनेस में बदलकर मिसाल कायम की है। कभी 70 रुपये की दिहाड़ी मजदूरी करने वाली संगीता आज खेती से सालाना 50 से 60 लाख रुपये की कमाई करती हैं। सीमित संसाधनों से शुरू हुआ उनका यह सफर मेहनत, नई तकनीक और जुनून का नतीजा है। आइए जानते हैं कि संगीता ने खेती को कैसे एक बड़ा बिजनेस बनाया।
हाइलाइट्स
- संगीता देवी ने खेती से 60 लाख रुपये का बिजनेस खड़ा किया।
- पहले 70 रुपये रोज की दिहाड़ी मजदूरी करती थीं।
- नई तकनीक से सालभर में 3 फसलें उगाती हैं।
मजदूरी से खेती तक का सफर
संगीता देवी झारखंड की राजधानी रांची के ओरमांझी सीडी ब्लॉक के ओरमांझी गांव की रहने वाली हैं। कुछ साल पहले तक वे 70 रुपये की दिहाड़ी मजदूरी करती थीं। इस मामूली कमाई से न तो परिवार का खर्च चल पाता था और न ही बच्चों के सपनों को पूरा करने का रास्ता दिखता था। हालात से परेशान होकर संगीता ने मजदूरी छोड़ने का फैसला किया और अपने पति के साथ मिलकर खेती की राह चुनी।
आधे एकड़ से शुरूआत, आज 70 एकड़ का साम्राज्य
14 साल पहले संगीता ने अपने पति के साथ मिलकर आधे एकड़ जमीन किराए पर ली और खेती शुरू की। शुरुआत में सबसे बड़ी चुनौती पानी की कमी थी, क्योंकि उनके इलाके में सिंचाई की सुविधा सीमित थी। इस समस्या से निपटने के लिए संगीता ने ड्रिप सिंचाई और पॉलीहाउस फार्मिंग जैसी आधुनिक तकनीकों को सीखा और लागू किया। धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाई और आज उनकी खेती 70 एकड़ तक फैल चुकी है।
साल में तीन फसलें, लागत कम-मुनाफा ज्यादा
संगीता ने नई तकनीकों का इस्तेमाल कर खेती को इस तरह व्यवस्थित किया कि वे साल में तीन फसलें उगा सकें। गर्मियों में वे तरबूज की खेती करती हैं, अगस्त से मटर की फसल लेती हैं और सर्दियों में सब्जियां उगाती हैं। इन तकनीकों से न सिर्फ उनकी लागत कम हुई, बल्कि उत्पादन और मुनाफा भी बढ़ गया। संगीता बताती हैं, “नई तकनीक ने मेरी मेहनत को दोगुना फल दिया। अब कम खर्च में ज्यादा कमाई होती है।”
कितना खर्च, कितनी कमाई?
संगीता की फसलें रांची, बोकारो और रिलायंस फ्रेश जैसे बड़े बाजारों में बिकती हैं। साल भर में तीन फसलें उगाने में उनकी लागत 15 से 20 लाख रुपये के बीच रहती है, जबकि कमाई 50 से 60 लाख रुपये तक पहुंच जाती है। यानी हर साल उन्हें 30 से 40 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा होता है। ड्रिप सिंचाई और पॉलीहाउस जैसी तकनीकों ने उनकी फसलों की गुणवत्ता और पैदावार को बढ़ाया, जिससे बाजार में उनकी मांग भी बढ़ी।
प्रेरणा का स्रोत
संगीता की कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो खेती को घाटे का सौदा मानते हैं। एक महिला के तौर पर उन्होंने न सिर्फ सामाजिक धारणाओं को तोड़ा, बल्कि यह भी साबित किया कि सही दिशा और मेहनत से खेती को बड़ा बिजनेस बनाया जा सकता है। आज वे न केवल अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं, बल्कि अपने बच्चों के सपनों को भी पूरा करने की राह पर हैं।
निष्कर्ष
संगीता देवी ने 70 रुपये की दिहाड़ी से 60 लाख रुपये के टर्नओवर तक का सफर अपनी हिम्मत और आधुनिक खेती के दम पर तय किया। उनकी सफलता यह साबित करती है कि खेती सिर्फ गुजारा नहीं, बल्कि एक समृद्ध बिजनेस भी हो सकती है। अगर सही तकनीक और मेहनत का साथ हो, तो कोई भी सपना असंभव नहीं है।